२९.१.१३

खाँमोशीमें सुन सको...

खाँमोशीमें सुन सको जिन्हे, गीत जब गाता है कोई,
तब लगता हरदम उसने जीने में चोंटें है खाई...

दिल तक पहूँचे ये उसके आवाज की ताकत है ,
दिलसे निकले लफ्ज, किसीसे चाहत की गेहराई...

अब तक बरसें बादल जो, पिछली बारीश के थे,
अब तक ढूँढ रहा हूँ मैं तो सर पर साया कोई...

भूलना चाहे भी तो, ये याद तेरी मुश्कील जालीम,
वक्त से आगे भागती, तेरी तरफ मेरी तनहाई...

बस अकेला मैं रहा, दुसरा कोई नहीं हमनवाँ,
रास्तेभर धूँप-छाव से लडती रही ये परछाई...
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हर्षल (२९/१/२०१३ - रात्रौ. १२.१५)