२६.३.१३

मेरी उडान...

फिर वही बाते, फिर वही चेहेरे,
वही याँदे, वही सारे,
बीते दिनकी बात निकाले,
लेकर आते रोती शक्ले,
नया कुछ करते नही,
जिंदगीमें रंग भरते नही,
और गुजरे पिछली गलियोंसे,
अपनें छुटे निशाँन ढुंढते...

क्यूँ ना होता पाना खुदको इतनाभी आसान?
सीख ज्यों होती हरेक मोड की कभी ना एकसमान...

दिन के बाद आए रात, रोज नया सवेरा,
एक डाल पर पँछीभी ना रोज करे बसेरा...
जिस दिन बाँधे पंख खुदहीने,
छोड दी बीच उडान,
लाख मिलेंगे बुझे सितारे,
पडे कही सुनसान...

करो नजारा खुली आँखसे,
दुनिया देखो नयी सोचसे,
बदला जाता रोज किनारा,
तैर ना पाता कभी जो हारा,
या तो ढूँढो सागर न्यारा,
मन में रखलो कोई तारा,
मँजीलतक ना पहूँचो जबतक,
रुकने ना दो खुदको तबतक...
अपने मन में ले लो ठान,
रोक सके ना मुझको कोई,
और ना मेरी उडान...
और ना मेरी उडान...
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हर्षल (२६/३/२०१३ - ११.४५  PM)

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